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सोमवार, 7 सितंबर 2009

सूचना प्रौद्योगिकी- ई गवर्नेन्‍स- एनईजीपी - उम्दा प्रशासन लाने के प्रयास

सूचना प्रौद्योगिकी

 

ई गवर्नेन्‍स- एनईजीपी - उम्दा प्रशासन लाने के प्रयास

                                                     -- अभिषेक सिंह उप सचिव (ई-गवर्नेस) ; एनईजीपी जागरूकता एवं संचार के नोडल अधिकारी हैं

       पिछले कुछ वर्षों में विभिन्न राज्य सरकारों और केन्द्रीय मंत्रालयों ने ई-गवर्नेन्‍स के युग में प्रवेश के लिए अनेक कदम उठाए हैं। लोक सेवाओं की अदायगी को बेहतर और उनकी प्रक्रियाओं को सरल बनाने के लिए अनेक स्तरों पर सतत प्रयास किये जा रहे हैं।

 

       राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्‍स योजना (एनईजीपी) ई-गवर्नेन्‍स के संबंध में उठाए गए कदमों को देश भर के सामूहिक विजन (अन्तर्दृष्टि) में समेकित कर समग्र रूप से एक साझा लक्ष्य के रूप में देखती है। इसी विचार के  अनुरूप देश के सुदूर गांवों तक पहुंच रहे देशव्यापी बुनियादी ढांचे का विशाल नेटवर्क विकसित हो रहा है। अभिलेखों का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण किया जा रहा है, ताकि इन्टरनेट पर आसानी से भरोसेमंद जानकारी मिल सके।

 

       मूल उद्देश्य उम्दा और सुस्पष्ट प्रशासनिक व्यवस्था को लोगों के दरवाजे तक पहुंचाना है। आखिरकार, भू-दस्तावेजों  की जानकारी प्राप्त करना, जन्म प्रमाण पत्र और पासपोर्ट हासिल करना, आयकर  विवरणी दाखिल करना और देश के सर्वोत्तम चिकित्सकों से परामर्श लेना माउस को क्लिक करने जैसा सरल ही होना चाहिए। और यह सब इतना निकट होना चाहिए कि जितना कि पड़ोस की दुकान।

 

राष्ट्रीय योजना की उत्पत्ति

       भारत में ई-गवर्नेन्‍स का परिदृश्य अब सरकारी विभागों के कम्प्यूटरीकरण से आगे बढक़र नागरिकों को केन्द्र में रखते हुए  सेवोन्मुखी और पारदर्शी हो चला है। राष्ट्रीय ई-गवर्नेन्‍स योजना का दृष्टिकोण, कार्यान्वयन पध्दति और प्रबंधन संरचना का अनुमोदन सरकार ने 2006 में किया था। पूर्व में उठाये गए विभिन्न कदमों की सफलताओं और विफलताओं  के अनुभवों ने देश की ई-गवर्नेन्‍स रणनीति को आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।

 

       इस धारणा का उचित संज्ञान लिया गया है कि यदि राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय सरकारों के स्तर पर ई-गवर्नेन्‍स में तेजी लानी है तो साझे विजन और रणनीति से निर्देशित कार्यक्रम का दृष्टिकोण अपनाना होगा।

 

       इस दृष्टिकोण को मुख्य और सहायक बुनियादी सुविधाओं के  आदान-प्रदान के जरिए खर्च में पर्याप्त बचत करने वाले उपाय के रूप में देखा गया है। निश्चित मानदंडों के आधार पर एक दूसरे के साथ मिलकर व्यवस्था को चलाया जा सकता है। इस दृष्टिकोण को नागरिकों के समक्ष सरकार का सही दृश्य पेश करने के प्रयास के रूप में भी देखा जा रहा है।

 

एनईजीपी यूनिवर्स

       एनईजीपी में केन्द्र, राज्य और स्थानीय सरकारों के स्तर पर लागू की जाने वाली 27 मिशन रूपी और आठ सहायक घटकों वाली परियोजनाएं  शामिल हैं। सहायक घटकों का उद्देश्य उचित प्रशासनिक और संस्थागत व्यवस्था, मुख्य बुनियादी ढांचा, और ई-गवनर्ेंस अपनाने के लिए आवश्यक कानूनी ढांचे का गठन करना है। आठ सहायक घटक मिशन रूपी परियोजनाओं से परे हैं और उनकी जवाबदेही सूचना प्रौद्योगिकी विभाग (डीआईटी) और प्रशासनिक सुधार और जन शिकायत निवारण विभाग (डीएआर एंड पीजी) पर है। डीआईटी के घटक हैं कोर इन्फ्रास्ट्रक्चर (एसडब्ल्यूएएन, एसडीसी और सीएससी), सपोर्ट इन्फ्रास्ट्रक्चर, तकनीकी सहायता टेक्निकल असिसस्टेंस, प्रमुख नीतियां कोर पालिसीज और आर एंड डी  डीआईटी और डीएआर एंड पीजी के संयुक्त उत्तरदायित्व के क्षेत्र हैं-एचआरडीप्रशिक्षण, संगठनात्मक संरचना और जागरूकता तथा मूल्यांकन।

 

मिशन रूपी परियोजनाएं

 

                ,ubZthih ds vUrxZr 27 fe'ku ifj;kstuk,a vkrh gSaA buesa ukS dsUæh;] X;kjg jkT; vkSj lkr fofé ea=ky;ksa fokxksa esa QSyh ,dh—r ,e,eih fe'ku :ih ifj;kstuk,a lekfgr gSaA fe'ku eksM का तात्पर्य है कि परियोजनाओं का उद्देश्य और क्षेत्र स्पष्ट रूप से परिभाषित है, परिमेय निष्कर्ष (सेना स्तर) और सुपरिभाषित मुकाम तथा कार्यान्वयन की समय सीमा दी हुई है। उच्च नागरिक और व्यापार मिलन बिन्दु के आधार पर चिन्हित 27 मिशन रूपी परियोजनाएं इस प्रकार हैं --

केन्द्रीय मिशन रूपी परियोजनाएं

       एमसीए 21, पेंशन, आयकर, पासपोर्ट और वीसा आव्रजन, केन्द्रीय उत्पाद कर, बैंकिंग, एमएनआईसी  यूआईडी, ई-कार्यालय और बीमा।

 

राज्यों की मिशन रूपी परियोजनाएं

       भू-अभिलेख प्रथम चरण, भू-अभिलेख द्वितीय चरण एवं पंजीकरण, सड़क परिवहन, कृषि, पुलिस, कोषालय, नगरपालिकाएं, ई-जिला, वाणिज्यिक कर ग्राम पंचायत और रोजगार कार्यालय।

 

एकीकृत मिशन रूपी परियोजनाएं

       सीएससी, ई-न्यायालय, ईडीआई, इंडिया पोर्टल, एनएसडीजी, ई-बिज़, ई-प्रोक्योरमेंट (वसूली)।

 

सामान्य सेवा केन्द्र

       सरकार ने 6 लाख से अधिक गांवों में एक लाख से अधिक सामान्य सेवा केन्द्रों की स्थापना की मंजूरी दे दी है। सरकार ने जो योजना मंजूर की हैं, उसके अनुसार, सीएससी की भारतीय नागरिकों को केन्द्रीय, निजी और सामाजिक क्षेत्र की सेवाओं की एकीकृत अदायगी का प्रारंभिक बिन्दु के रूप में कल्पना की गई है। इसका उद्देश्य एक ऐसा मंच तैयार करना है जो सरकारी, निजी और सामाजिक क्षेत्र के संगठनों को उनके सामाजिक और व्यावसायिक लक्ष्यों विशेषकर देश के सुदूर गांवों की जनसंख्या के कल्याण से जुड़े विषयों को आईटी आधारित और अन्य सेवाओं के माध्यम से जोड़ सके।

 

       सीएससी, ई-गवर्नेन्‍स, शिक्षा, स्वास्थ्य, टेलीमेडिसिन, मनोरंजन आदि क्षेत्रों में उच्च स्तरीय और किफायती वीडियो, आवाज और आंकड़ों की जानकारी सेवायें प्रदान करने में सक्षम हैं। सीएससी की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वह ग्रामीण क्षेत्रों में आवेदन पत्र को डाउनलोड करने, प्रमाण पत्र, बिजली, टेलीफोन, पानी और अन्य सेवाओं के बिलों के भुगतान जैसी वेब-योग्य ई-गवर्नेन्‍स से जुड़ी सेवायें प्रदान कर सकेगा।

 

स्वान (एसडब्ल्यूएएन) के साथ उड़ान भरना और एसडीसी'ज के जरिये सेवा प्रदान करना

       राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (एसडब्ल्यूएएन) योजना एनईजीपी की तीन प्रमुख अधोसंरचनात्मक स्तंभों में से एक है। मार्च 2005 में भारत सरकार द्वारा अनुमोदित इस योजना के लिए अनुमानत: 33 अरब 34 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है। इसका उद्देश्य प्रत्येक राज्य केन्द्र शासित प्रदेश के मुख्यालय को जिला मुख्यालय से और जिला मुख्यालय को (2 मेगाबाइट्स प्रति सेकेंड) ब्लाक मुख्यालयों से आपस में जोड़ते हुए राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (स्वान-एसडब्ल्यूएएन) स्थापित करना है। यह सुविधा न्यूनतम 2एमवीपीएस (मेगा बाइट्स प्रति सेकेंड) की लीज्ड लाइन पर दी जाएगी। योजना का उद्देश्य जी 2जी और जी2सी सेवायें प्रदान करने के आशय से एक सुरक्षित घनिष्ठ उपयोगकर्ता समूह (सीयूजी) सरकारी नेटवर्क स्थापित करना है।

 

       परियोजना की अवधि 5 वर्ष है जबकि पूर्व परियोजना क्रियान्वयन अवधि  18 महीने की है। एक केन्द्रीय योजना के रूप में अमल में लायी जा रही इस परियोजना के लिए 20 अरब 5 करोड़ रुपए सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने अनुदान के रूप में दिये हैं। शेष राशि अतिरिक्त केन्द्रीय सहायता (एसीए) के रूप में मिलने वाली राज्य योजना के तहत प्राप्त होगी।

 

       राज्य आंकड़ा केन्द्र (स्टेट डाटा सेन्टर-एसडीसी)- एनईजीपी के तहत एक और प्रमुख संरचनात्मक स्तंभ है। जी-2जी, जी2सी और जी2बी सेवाओं की उम्दा इलेक्ट्रॉनिक अदायगी के लिए सेवा व्यवस्था  उसके इस्तेमाल और बुनियादी ढांचे को सुगठित बनाने के लिए राज्यों में एसडीसीज स्थापित करने का प्रस्ताव है। राज्यों द्वारा ये सेवायें राज्य व्यापी एरिया नेटवर्क (स्वान) और सामान्य सेवा केन्द्र (सीएससी) की ग्रामीण स्तर  तक की कनेक्टीविटी  (संचार संपर्क) जैसी बुनियादी संचार सुविधाओं के सहयोग से दोषरहित ढंग से मुहैया करायी जा सकती हैं।

 

       राज्य आंकड़ा केन्द्र (एसडीसीज) राज्य के केन्द्रीय भंडार, सुरक्षित आंकड़ा कोष, ऑन लाइन सेवा अदायगी, नागरिक सूचना  सेवा पोर्टल, राज्य इन्टरनेट पोर्टल, आपदा की भरपाई, सुदूर प्रबंधन और सेवा एकीकरण का कार्य  करते हुए  अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं। एसडीसी'ज की सहायता से आंकड़ा प्रबंधन, आईटी संसाधन प्रबंधन, तैनाती और अन्य खर्चों में अधिक से अधिक कमी लाई जा सकती है।

 

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान - vडॉ. सौरभ दीक्षित

भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान

v                डॉ. सौरभ दीक्षित

v                 लेखक भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में फेकल्टी मेम्बर है

 

       पर्यटन में केरियर बनाने वाले छात्रों का प्रथम प्रयास भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान में प्रवेश के लिये होता है। यह संस्थान विगत 26 वर्षों से देश में पर्यटन, शिक्षा एवं मानव संसाधन के लिये सेवारत है। यहां स्नातकोत्तर स्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार(इंटरनेशन बिजनेस), सेवा क्षेत्र (सर्विसेज सेक्टर), पर्यटन एवं यात्रा (टूरिज्म एवं ट्रेवल) और पर्यटन एवं लेजर (टूरिज्म एवं लेजर) विषयों में प्रबंधन की उपाधि दी जाती है । इसके अलावा कई विषयों जैसे कि कम्प्युटराइज्ड आरक्षण प्रणाली, फ्रेंच एवं जर्मन विदेशी भाषायें, पर्यटन प्रबंधन, ईको टूरिज्म, ग्राहक संतुष्टि आदि विषयों पर शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग पाठयक्रम आवश्यकतानुसार चलाये जाते हैं ।  संस्थान का प्लेसमेंट रिकार्ड बहुत अच्छा है। विश्व में आर्थिक मंदी के बावजूद इस वर्ष संस्थान के पर्यटन छात्रों का प्लेसमेंट शत-प्रतिशत रहा। नौकरी देने वाली कम्पनियों में थॉमस कुक, एसओपीसी, ओरबिट, सर्दन ट्रेवल्स, लिस्परिंग पॉम आदि कम्पनियां हैं । संस्थान के सभी पाठयक्रम एआईसीटीई द्वारा मान्यता प्राप्त हैं । संस्थान में आने वाले गणमान्य प्रोफेसर्स/ व्यवसायियों में प्रोफेसर एरिक कोहेम(इजरायल), प्रोफेसर क्रिस कूपर , श्री प्रेम सुब्रमण्यम , श्री इंदर शर्मा, प्रोफेसर तपन पंडा, आईआईएम इन्दौर आदि प्रमुख हैं ।

इन्फ्रास्ट्रक्चर - संस्थान 22 एकड़ के हरेभरे सुरम्य वातावरण में फैला हुआ है जो यहां आने वाले छात्रों को अनायास ही अपनी ओर खींच लेता है । खेलकूद में रूचि रखने वाले छात्रों के लिये बिलियर्डस, स्नूकर, बेडमिंटन, क्रिकेट, जिमनेज्यिम, बॉलीबाल, केरम,शतरंज, फुटबाल आदि की सुविधायें हैं । संस्थान का सभागार एयरकंडीशन है एवं इसमें 500 लोग बैठ सकते  हैं । संस्थान में दो संगणक केन्द्र जिनमें करीब 90 कम्प्यूटर्स लगे हुये हैं । ये संगणक केन्द्र पर्यटन एवं प्रबंधन से संबंधित सॉफ्टवेयर द्वारा युक्त हैं । सभी कम्प्यूटर्स में छात्रों, कर्मचारियों के लिये इंटरनेट कनेक्टिविटी उपलब्ध है। संस्थान का पुस्तकालय पर्यटन के क्षेत्र में देश का सबसे बड़ा पर्यटन से संबंधित पुस्तकों का संग्रह केन्द्र है।

आईआईटीटीएम की स्थापना सन् 1983 में संसदीय समिति की अनुशंसा पर भारत सरकार ने की थी । पिछले कई वर्षों से पर्यटन के क्षेत्र में मानव संसाधन की कमी महसूस की जा रही थी । अत: आईआईटीटीएम की स्थापना पर्यटन के क्षेत्र में एक अपेक्स बॉडी की तरह दिल्ली में की गई । सन् 1992 में इसको ग्वालियर स्थानांतरित किया गया । इसके पश्चात सन् 1996 में संस्थान में पर्यटन, यात्रा विषय पर

स्नातकोत्तर डिप्लोमा शुरू किया गया । जो कि भारतवर्ष में काफी प्रचलित हुआ। तत्पश्चात पर्यटन एवं प्रबंधन से संबंधित विषयों में स्नातकोत्तर डिग्री एवं पर्यटन में स्नातक डिग्री शुरू की गई । वर्तमान में संस्थान पीजीडीएम की उपाधि देता है । संस्थान एशिया पेसिफिक क्षेत्र में उन गिने चुने संस्थानों / विश्वविद्यालयों में से एक है जो पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन विषय में स्नातकोत्तर की उपाधि देते हैं ।

संस्थान नियमित पाठयक्रमों के अलावा अपने एवं पर्यटन मंत्रालय के लिये केपीसिटी बिल्ंडिग एवं टूरिज्म (सीबीएसटी), लर्न वाइल यू अर्न (एलडब्ल्यूवायएन), डोनर, विदेशी छात्रों के लिये मार्कोपोलो , गाइड ट्रेनिंग कोर्स संचालित करता है । एक साथ 450 से अधिक गाइडों को एक ही स्थान पर ट्रेनिंग देने के लिये संस्थान का नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है । आने वाले समय में संस्था पीएचडी स्तर के शोध कार्य करायेगा ।

       संस्थान कई राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त संस्थाओं जैसे कि यूएनएसके द्वारा गठित एशिया पेसिफिक एज्यूकेशन एंड ट्रेनिंग इन्स्टीटयूशन इन टूरिज्म (एपीइटीआईटी), एमडिशा, इंडियन एसोसियेशन ऑफ टूर आपरेटर्स , ट्रेवल एजेन्ट्स एसोसियेशन आफ इंडिया , एफएचआरएआई का सदस्य है । संस्थान एशिया पेसिफिक एज्यूकेशन एंड ट्रेनिंग इन्स्टीटयूशन इन टूरिज्म (एपीइटीआईटी), इन्टरनेशनल फोकल पॉइंट है तथा संस्थान के निदेशक प्रोफेसर सितीकंठ मिश्रा इसके वाइस चेयरमेन हैं । संस्थान ऐपिटिक का आधिकारिक न्यूज लेटर भी प्रकाशित करता है जिसका प्रचार-प्रसार 37 देशों में है ।

      भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबंधन संस्थान एक मल्टी केम्पस इन्स्टीटयूट है । इसके केन्द्र नई दिल्ली, भुवनेश्वर एवं गोवा में है । ग्वालियर सेंटर हेडक्वार्टर है । गोवा केन्द्र को नेशनल इन्स्टीटयूट आफ वाटर स्पोट्र्स के नाम से जाना जाता है । जोकि वाटर स्पोट्र्स में शर्ट टर्म कोर्सेस चलाता है और कई राज्यों को कन्सलटेंसी देता है ।

आगामी वर्षों में संस्थान का विस्तार प्रस्तावित है । संस्थान भारत सरकार को कॉमनवेल्थ गेम्स में कमरों की आवश्यकता, और एसिसिबल टूरिज्म पर रिसर्च में भी सहायता दे रहा है ।

 

बुधवार, 5 अगस्त 2009

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर

राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय ग्वालियर

·                    डॉ. डी.एस.चंदेल

·                    रजिस्ट्रार,राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय

 

 

      राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय की स्थापना 19 अगस्त 2008 को राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय अध्यादेश 2008 के अन्तर्गत हुई थी । इस विश्वविद्यालय की स्थापना हेतु कई वर्षों से प्रयास किये जा रहे थे । इसी संदर्भ में माननीय मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान , माननीय श्री अनूप मिश्रा मंत्री म.प्र. शासन, माननीय श्री नरेन्द्र सिंह जी तोमर प्रदेश अध्यक्ष एवं अन्य स्थानीय सांसदों गणमान्य अतिथियों की उपस्थित में इस विश्वविद्यालय की स्थापना की गई ।

       राजा मानसिंह तोमर की साहित्य एवं संगीत के प्रति अगाध श्रध्दा थी । उनके कार्यकाल में ग्वालियर में संगीत विद्यालय की स्थापना की गई , जो शायद भारत वर्ष का पहला संगीत विद्यालय था। राजा स्वयं भी संगीतज्ञ एवं कवि थे व संगीत की ध्रुपद शैली के प्रणेता भी ।  राजा मानसिंह तोमर संगीत एवं कला विश्वविद्यालय अधिनियम 2009 विधानसभा द्वारा 11 फरवरी 2009 को पारित हुआ । इस अधिनियम के अन्तर्गत विश्वविद्यालय के संचालन के लिये प्रथम कुलपति, आचार्य पं. चित्तरंजन ज्योतिषी को विश्वविद्यालय स्थापना के लिये शीघ्र समस्त कार्य पूर्ण करने के निर्देश दिये गये हैं । इस अधिनियम के अन्तर्गत बीस सदस्यों वाली एक साधारण परिषद् होगी , जिसके अध्यक्ष माननीय मुख्यमंत्री जी होंगे ।  विश्वविद्यालय की एक कार्य परिषद और विद्या परिषद भी होगी  जो कि विश्वविद्यालय का संचालन करेगी । इस विश्वविद्यालय का क्षेत्र संपूर्ण मध्यप्रदेश होगा।

       वर्तमान में विश्वविद्यालय के अन्तर्गत 24 महाविद्यालय संबध्दता प्राप्त हैं और इसके लिये जो पाठयक्रम हैं उनको निर्धारित करने के लिये विभिन्न विद्वानों की बैठकें संपन्न हो चुकी हैं । इस अधिनियम के अन्तर्गत संगीत संकाय, नृत्य संकाय, कला संकाय और अन्य संकाय जो परिनियम के अधीन होंगे का गठन किया गया है । यह भी निर्णय लिया गया कि नाटय संकाय को भी इसमें शामिल किया गया ।

      भोपाल में संस्कृति मंत्री श्री लक्ष्मीकांत शर्मा, श्री मनोज श्रीवास्तव, प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग,       श्री राम तिवारी संचालक संस्कृति विभाग, पं चित्तरंजन ज्येतिषी कुलपति जी की उपस्थिति में विश्विद्यालय के समग्र विकास पर चर्चा हुई । शैक्षणिक पदों का सृजन अन्य सुविधाओं पर विशेष रूप से चर्चा हुई और एक संबध्द कार्यकम के अन्तर्गत इसको पूर्ण करने का निर्णय लिया गया । इस विश्वविद्यालय में सभी संकायों में शोधकार्य, स्नातकोत्तर पाठयक्रम, स्नातक स्तर के पाठयक्रम , पोस्ट ग्रेज्युएट डिप्लोमा एवं शार्ट कोर्स भी होंगे।

विश्वविद्यालय का उद्देश्य -

1-     संगीत एवं कला संबंधी विद्या तथा ज्ञान का अभिवर्धन तथा उसका प्रसार और भारतीय समाज के विकास में रचनात्मक भूमिका सुनिश्चित करना ।

2-     छात्रों तथा अनुसंधनकर्ता विद्वानों में संगीत एवं कला के क्षेत्र में सुधारों के संबंध में बुध्दि-कौशल का विकास करके संगीत एवं कला तथा संबंधित क्षेत्र में समाज की सेवा करने के उत्तरदायित्व की भावना का विकास करना ।

3-     संगीत से संबंधित ज्ञान की अभिवृध्दि के लिये अभिभाषणों, सेमीनारों, परिसंवादों और अधिवेशनों को आयोजित करन  और संगीत एवं कला संबंधी प्रक्रिया को सामाजिक विकास का प्रभावशाली उपकरण बनाना ।

4-     परीक्षायें आयोजित करना और उपाधियां तथा अन्य विद्या संबंधी विशिष्टताएं प्रदान करना ।

5-     ऐसे समस्त कार्य करना जो विश्वविद्यालय के समस्त उद्देश्यों या उनके से किसी भी उद्देश्य को आगे बढ़ाने के लिये आनुषंगिक, आवश्यक या सहायक हैं ।

6-     विश्वविद्यालय का और गवेषणा, शिक्षा और शिक्षण के ऐसे केन्द्रों क, जो विश्वविद्यालय के उद्देश्यों को अग्रसर करने हेतु आवश्यक है, प्रशासन तथा प्रबंधन करना ।

7-     संगीत एवं कला संबंधी ज्ञान या विद्या की ऐसी शाखाओं में, जैसा कि विश्वविद्यालय उचित समझे, शिक्षण हेतु उपबंध करना और गणवेषण के लिये संगीत एवं कला के ज्ञान की अभिवृध्दि तथा प्रसार के लिये उपबंध करना ।

8-                              अध्येतावृत्तियां, छात्रवृत्तियां, पुरस्कार तथा पदक संस्थित करना तथा प्रदान करना ।

 

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

अटल बिहारी वाजपेई भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी एवं प्रबंध संस्थान ग्वालियर -सुभाष चन्द्र अरोड़ा

अटल बिहारी वाजपेई भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी एवं प्रबंध संस्थान ग्वालियर

(भारत सरकार का स्वशासी संस्थान)

v                 सुभाष चन्द्र अरोड़ा

 


v                 प्रस्तुतकर्ता संभागीय जनसंपर्क कार्यालय ग्वालियर में संयुक्त संचालक है ।

 

ई-गवर्नेंस साफ्टवेयर निर्माण हेतु पुरूस्कृत

ग्वालियर के अटल बिहारी वाजपेई प्रौद्यौगिकी संस्थान को ई गवर्नेंस की दृष्टि से उपयोगी '' फाईल ट्रेकिंग सिस्टम'' सॉफ्टवेयर निर्माण हेतु प्रदेश के सूचना प्रौद्यौगिकी मंत्री श्री कैलाश विजयवर्गीय ने '' ई गवर्नेंस इनीशेटीव इन मध्य प्रदेश'' पुरूस्कार प्रदान किया। फाईल ट्रेकिंग सिस्टम के इस सॉफ्टवेयर का आई आई आई टी एम के डॉ. अनुराग श्रीवास्तव, डॉ. दिलीप कुमार एवं दो छात्रों विनीत रंजन एवं रोहित शुक्ला द्वारा निर्माण किया गया। यह द्विभाषीय सॉफ्टवेयर ओपन सोर्स तकनीक पर आधारित है। इस सॉफ्टवेयर की मदद से किसी भी विभाग अथवा संस्थान में आने व जाने वाली फाइलों का रिकार्ड आराम से रखा जा सकता है साथ ही समय समय पर फाइल की स्थिति की जानकारी भी ली जा सकती है।

 

 

अटलबिहारी वाजपेई भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी एवं प्रबंध संस्थान ग्वालियर भारत सरकार द्वारा स्थापित एक समविश्वविद्यालय है। यह सूचना प्रौद्यौगिकी तथा प्रबंधन दोनों क्षेत्रों में एक प्रतिष्ठित संस्थान है तथा विश्वस्तर का नामचीन संस्थान बनने के लिये प्रयासरत है।

       यह संस्थान 160 एकड़ के परिसर में निर्मित है तथा सक्षम शिक्षकों के साथ ही कलात्मक प्रयोगशालाओं से सुसज्जित है। इस संस्थान का परिसर सभी आवश्यक सुविधाओं से परिपूर्ण है, जहां छात्रों के व्यक्तित्व के सम्रग विकास के प्रयत्न किये जाते हैं। यहां की गतिविधियों का उद्देश्य छात्रों में जानकारी तथा शोध संस्कृति को बढ़ावा देना है।

       अ बि वा. भारतीय सूचना प्रौद्यौगिकी एवं प्रबंध संस्थान ग्वालियर का उद्देश्य देश में सूचना प्राद्यौगिकी तथा प्रबंधन की शिक्षा में बेंचमार्क स्तर की स्टेट ऑफ आर्ट सुविधायें प्रदान करना है। इस संस्थान का परिसर आधुनिक संचार सुविधाओं से सुसज्जित है। संस्थान, प्रबंधन एवं सूचना प्रौद्यौगिकी के क्षेत्र में सम्पूर्ण ज्ञान को प्रदान करने वाले वातावरण को तैयार करने वाले शिक्षा केन्द्र के रूप में स्थान प्राप्त कर चुका है।

       उद्योगों से संबंधित प्रबंधन के कार्यक्रम सलाहकार सेवा प्रदान करते हुए, संस्थान में समकालीन तथा संबंधित शोध क्षेत्रों की पहचान की जा चुकी है। आई आई आई टी एम. की शोध सुविधाओं को प्रयोगशाला  परा संरचनाओं के द्वारा सशक्त बनाया गया है।

       शैक्षणिक पोषण के हित के लिये संस्थान में शोध पर विशेष बल दिया जा रहा है। प्रयोगशालाओं को सशक्त बनाकर छात्रों तथा शिक्षकों को शोध कार्यों में समाहित कर देश विदेश के विश्व विद्यालयों से सहयोग बढ़ाकर इन उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सका है। वर्तमान में संस्थान में निम्नलिखित प्रयोगशालायें संचालित हैं।

       आधारभूत इलेक्ट्रानिक प्रयोगशाला, डिजिटल प्रणाली प्रयोगशाला, संचार प्रणाली प्रयोगशाला, कम्प्यूटर नेटवर्किंग प्रयोगशाला, जेनेटिक कम्प्यूटिंग प्रयोगशाला (1,2,3), कम्यूनिकेशन स्किल प्रयोगशाला, वी एल एस आई. डिजाइन प्रयोगशाला, बिजनिस इनफोर्मेटिक्स प्रयोगशाला, ह्यूमनसेन्टर्ड कम्प्यूटिंग प्रयोगशाला, इन्फोर्मेशन सिक्योरिटी प्रयोगशाला, इंजीनियरिंग भौतिकी प्रयोगशाला तथा आई सी टी. कार्यशाला ।

       संस्थान के पुस्तकालय में प्रबंधन सूचना प्रौद्यौगिकी कम्प्यूटर विज्ञान, नेटवर्किंग, समाज विज्ञान के साथ साथ औद्यौगिक शोध पत्र तथा परियोजना प्रतिवेदनों सहित पाठय पुस्तकों व संदर्भ ग्रंथों का अच्छा संग्रह है।

       आई आई आई टी एम. ने सूचना स्रोतों की प्राप्ति का विस्तार डाटाबेस एक्सेस वर्चुअल पुस्तकालय के द्वारा किया है। यह पुस्तकालय इनडेस्ट कान्सोर्टियम का सदस्य है। पुस्तकालय द्वारा ई बी एस. को. के माध्यम से 800 से ज्यादा पत्रिकाओं को प्राप्त किया गया तथा सी. एम. आई. ई. द्वारा इकोनोमिक डाटाबेस उपलब्ध कराया गया है। संस्थान का पुस्तकालय सूचना प्रौद्यौगिकी तथा प्रबंधन के क्षेत्र की 200 से अधिक पत्र पत्रिकाओं को मंगाता है। इस पुस्तकालय में दर्शन शास्त्र योग आदि की पुस्तकें भी हैं। वर्तमान में छात्रों के लिये 14,500 पुस्तकें उपलब्ध हैं।

शैक्षणिक कार्यक्रम का रूपांकन इस अवधारणा से किया गया है, कि प्रबंधन, को सूचना प्रौद्यौगिकी के साधन के रूप में प्रभावशाली ढंग से संयुक्त किया जाये। पाठयक्रम का रूपांकन सूचना प्रौद्यौगिकी से संबंधित

आधुनिक विकास को ध्यान में रखकर किया गया है। इसमें साफ्टवेयर, नेटवर्किंग, मोबाइल, कंप्यूटिंग, व्ही एल एस आई. रूपांकन आदि के क्षेत्र सम्मिलित किये गये हैं। सूचना प्रौद्यौगिकी के अन्य क्षेत्रों जैसे- ई लर्निंग, ई गवर्नेंस, पर बल दिया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी  की व्यवस्थित प्रबंधकीय श्रृंखला है। जिसमें स्ट्रैटजिक प्रबंधन तथा योजना कारकों का समावेश है संस्थान द्वारा एम टैक. , एम बी ए. तथा पी एच डी. कार्यक्रमों की ओर उन्मुख होने वाले स्नातकोत्तर पाठयक्रम संचालित है।

पंच वर्षीय इंटीग्रेटेड स्नातकोत्तर (आई पी जी.) कार्यक्रम - दस सेमेस्टर पूर्ण करने पर यह कार्यक्रम दोहरी डिग्री (स्नातक तथा स्नातकोत्तर) प्रदान करता है। कार्यक्रम का निर्माण इस प्रकार किया गया है जिससे छात्र छ: सेमेस्टर पूर्ण करने के पश्चात एम बी ए अथवा एम टैक. का चयन कर सकता है। छ: सेमेस्टर तक छात्राओं को विशेष और उसके विस्तार के लिये वृहद आयाम प्राप्त होता है। ताकि वे अपने आधार और दृष्टिकोण का विस्तार कर सकें। इसके लिये विज्ञान, मानविकी, प्रबंधन, कंप्यूटर एवं आई टी. विषयों को सम्मिलित किया गया है।

       अखिल भारतीय स्तर पर संचालित होने वाले ए आई आई ट्रिपल ई.अखिल भारतीय यांत्रिक प्रवेश परीक्षा के द्वारा कार्यक्रम में प्रवेश दिया जाता है।

एम टैक (आई टी.) कार्यक्रम (2वर्ष) - सूचना प्रौद्यौगिकी के उभरते हुए छात्रों के लिये तकनीकी रूप से सक्षम वृत्तिकों को तैयार करने के उद्देश्य से एम टैक कार्यक्रम का तकनीकी विकास किया गया है। इस कार्यक्रम का रूपांकन सूचना प्रौद्यौगिकी की अवधारणा के विभिन्न  खण्डों में आवकों के लिये किया गया है। छात्रों का चयन व्यक्तिगत साक्षात्कार तथा जी ए टी ई. में अर्जित  अंकों के आधार पर किया जाता है। एम टैक स्तर पर विशेषज्ञता चार क्षेत्रों में प्रस्तावित है। ये चार क्षेत्र क्रमश: सूचना प्रौद्यौगिकी, उन्नत नेटवर्क, साफ्टवेयर इंजीनियरिंग तथा व्ही एल एस आई. है।

एम बी ए. कार्यक्रम (2 वर्ष )- एम बी ए पाठयक्रम को सूचना प्रौद्यौगिकी के महत्व को रेखांकित करते हुए इस तरह से रूपांकित किया है कि संबंधित सूचना तथा इसके प्रसारण में प्रबंधकीय परिस्थितियों में त्वरित गति में निर्णय लेने योग्य छात्रों को बनाया जा सके। इस कार्यक्रम को प्रबंधन की अवधारणा तथा सूचना प्रौद्यौगिकी दोनों को मिश्रित कर तैयार किया गया है। जी डी. के पश्चात व्यक्तिगत साक्षात्कार तथा कैट के आधार पर संस्थान में छात्र एवं छात्राओं का चयन किया जाता है।

शोध कार्यक्रम (पी एच डी.)- जुलाई 2001 में डाक्टरेट कार्यक्रम प्रारंभ किया गया । संस्थान में संचालित प्रवेश परीक्षा तथा साक्षात्कार के माध्यम से छात्रों का चयन शोध कार्यक्रम के लिये किया जाता है। सूचना प्रौद्यौगिकी तथा प्रबंधन पर बल देते हुए समस्त क्षेत्रों में डाकटोरल कार्यक्रम उपलब्ध कराया गया है। इनमें निम्न लिखित अर्न्तभागी शोध क्षेत्रों को शामिल किया गया। मोबाइल कंप्यूटिंग (संचार प्रणालियों डबल्यू ए पी. वायर लेस नेटवर्किंग आदि) नेटवर्किंग तथा सूचना सुरक्षा (वितरित नेटवर्क, सेन्सर नेटवर्क सूचना सुरक्षा किप्टोग्राफी आदि)

       सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग, (एस डब्ल्यू आर्किटेक्चर, अलगोरिथमस - ग्राफ प्रोब्लम ) डाटा स्ट्रक्चर प्रोग्रामिंग लेंग्वेज आपरेटिंग प्रणाली गुणवत्ता प्रबंधन आदि, एम्बेडेड प्रणाली, (वीएलएसआई)डिजाइन डिजीटल सिस्टम डिजाइन, एन ई एम एस. आदि, ह्यूमन सेन्टर्ड कंप्यूटिंग ,एन.एल.पी.ए.एल, एच.सी.एल.  इमेज प्रोसेसिंग स्पीच टैक्नोलॉजी कंप्यूटर विजन एण्ड रोबोटिक्स सीमेन्टिक वेब डब्ल्यू 3 सी. स्टेण्डर्डस लोकेलाइजेशन आदि, ज्ञान प्रबंधन (इन्फार्मेशन इंटीग्रेशन) डीडीएस, एससीएम, ईआरपी, पीएलएम, पीडीएम, आईपीआर तथा गुणवत्ता, प्रबंधन टैक्नोलॉजी बिजनिस इम्क्यूबेशन आदि व्यापार विश्लेषण (डाटा वेयर हाउसिंग माइनिंग,व्यावसायिक बौध्दिकता डाटा, विजुअलाइजेशन जोखिम प्रबंधन आदि) नैनो विज्ञान तथा प्रौद्यौगिकी (मटेरियल मॉडलिंग, नैनो सेन्सर्स, नैनो डिवाइसेज)।

       संस्थान उद्योगों से शोध एवं विकास तथा मानवशक्ति के बेहतर उपयोग के लिये लम्बे  समय तक संबंध कायम करने के प्रयास करता है। सीईओ व्याख्यान ग्रीष्म इन्टर्नशिप तथा परिसर भर्ती आदि के द्वारा उद्योगों के संपर्क में रहते हैं। परिसर के अंदर तथा उसके बाहर दोनों प्रकार से रोजगार के अवसर उपलब्ध कराये गये हैं। 2008 बैच के 90 प्रतिशत छात्रों को रोजगार प्राप्त हो चुका है।  शेष छात्रों को रोजगार उपलब्ध कराने के प्रयास जारी हैं। 2009 के बैच के रोजगार खोजने के अन्वेशन कार्य भी प्रारंभ हो चुके हैं।

इति।