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रविवार, 6 जुलाई 2008

प्रश्‍न: क्‍या चम्‍बल के डकैत अब भी घोड़ों पर भागते हैं, जैसा हम फिल्‍मों में देखते हैं – मनु देसाई, अहमदाबाद गुजरात

प्रश्‍न: क्‍या चम्‍बल के डकैत अब भी घोड़ों पर भागते हैं, जैसा हम फिल्‍मों में देखते हैं मनु देसाई, अहमदाबाद गुजरात

उत्‍तर- मनु जी, नहीं आजकल चम्‍बल में न घोड़े बचे हैं, और न डकैत घोड़ों पर दौड़ते हैं, किसी जमाने में आज से तीस चालीस साल पहले जरूर यहॉं डकैत घोड़ों पर दौड़ते थे, तब यहॉं बहुत घोड़े थे और हर जगह हर गॉंव में घुड़साल हुआ करती थी, आवागमन के तब अन्‍य कोई साधन नहीं थे केवल घोड़े ही लोगों की यात्रा के साधन थे । अब तो मोटर साइकिले, चार पहिया वाहनों और अन्‍य द्रुत गति वाहनों का चम्‍बल में हर गॉंव शहर में उपयोग किया जाता है, आजकल के डकैत तो लम्‍पट और छिछोरे मात्र हैं जो महज अपहरण, चोरी चपाटी जैसे कार्य धन कमाने हेतु कर रहे हैं, जो कि अधिकांशत: शहरों में ही रहते हैं और बाहर के शहरों में ही अधिकांश फरारी जीवन काटते हैं, और बाकायदा अपने बीवी बच्‍चों के साथ रहते हैं तथा आपराधिक वारदातों का अंजाम अन्‍यत्र देते हैं, चम्‍बल के बीहड़ों में तो अब यदा कदा ही कभी कभार कोई डकैत दिखाई देता है । वह भी पैदल या आधुनिक वाहनों पर सवार, अधिकतर डकैत राजनेताओं या पुलिस के संरक्षण में रहते हैं और बाकायदा नेताओं, मंत्रियों व पुलिस अधिकारीयों को डकैतों से हफ्ता या वसूली कमीशन बंधा रहता है । आप हमारा आलेख मुरैना डायरी चम्‍बल की कानून व्‍यवस्‍था पढ़ते रहें, आपको सारा सिस्‍टम समझ आ जायेगा, यह श्रंखलाबद्ध आलेख है, इसकी अगली किश्‍त शीघ्र ही आपको पढ़ने को मिलेगी, आपने इसके प्रकाशन के विलम्‍ब का कारण पूछा है, हम आपको बताना चाहते हैं, कि इसका प्रकाशन स्‍थगित नहीं किया गया है और न रोका गया है, दरअसल बीच बीच में हम पर बहुत अधिक कार्यभार बढ़ जाता है और अचानक इमर्जेन्‍सी कवरेज और तत्‍काल प्रकाशन योग्‍य सामग्री बहुत अधिक आ जाती है, हमारे संसाधन सीमित हैं अत: कई बार चाहते हुये भी स्थितियां हमारे नियंत्रण में नहीं रहतीं और कई सामायिक प्रकाशन रोक कर इमर्जेन्‍सी व तात्‍कालिक प्रकाशन जारी करने पड़ते हैं, दूसरे यहॉं बिजली कटौती दिन रात कभी भी होती रहती है और कई प्रकाशन बिजली कटौती के चलते विलम्‍बग्रस्‍त हो जाते हैं । आपके अन्‍य सवालों के उत्‍तर हम अपने आलेख में देंगें (वैसे आप उसे पढ़ते रहें उसमें पहले से लगभग सारे उत्‍तर समाहित कर लिये गये हैं) आश्‍चर्य जनक तथ्‍य यह है कि इस आलेख के सम्‍बन्‍ध में सबसे अधिक आतुरता तो हमारी स्‍थानीय चम्‍बल में हैं, बहुत से लोग इसकी अगली किश्‍तों के लिये हमारे कार्यालय में ही आ धमकते हैं और अगली किश्‍त की प्रतियां मांगते हैं, हम खुद भी परेशान हो जाते हैं, आप निश्चिन्‍त रहें यह आलेख नियमित रहेगा ।              

1 टिप्पणी:

ek tamanna jeene ki ने कहा…

shreeman manu jee kis jamane ki baat kar rahe hain aap, gaya wo jamana, ab to ye sab filmon main bhi nahi dikhate hain



"Ek tamanna jeene ki"