प्रश्न : क्या होता है एफ.एम., ये एफ.एम. क्या बला है – राकेश सिंह धाकरे, सुभाष नगर, हजीरा ग्वालियर
उत्तर: रेडियो तंरंगों को अभी तक दो पारम्परिक तरीकों से सूदूर सम्प्रेषित किया जाता है, पिछले कुछ साल तक सर्वाधिक लोकप्रिय तरीका था ए.एम. अर्थात एम्प्लीट्यूड मॉडयूलेशन के जरिये, इसमें तरंगों के आयाम का मॉडयूलेशन किया जाता है जिसे ए.एम. या एम्पलीटयूड मॉडयूलेशन कहते हैं । इस विधि से पारम्परिक रेडियो प्रसारण भारत में होता है, दूरदर्शन के देश भर में फैलने से पहले भारत में रेडियो ही एक ऐसा मीडिया था जो गॉंवो और जंगलों तक पहुँचता था इसमें यही एम्पलीटयूड मॉडयूलेशन इस्तेमाल किया जाता था/ है । इसकी विशेषता यह है कि इस प्रकार के मॉडयूलेशन में तरंगों का प्रसारण काफी दूर तक किया जा सकता है, जैसे बी.बी.सी. या रेडियो सीलोन, या विविधि भारती आदि करते थे, रेडियो पर बिनाका गीत माला जिसका कि प्रसारण काफी दूर से होने के बावजूद समूचे देश के गॉंवों जंगलों में सुना जाता था । इस विधि में कमी यह है कि इसमें नॉइज अर्थात शोरगुल एवं सिग्नल्स फ्लक्चुएशन्स अधिक रहते हैं और कभी कभी साफ सुनायी नहीं देता ।
रेडियो तरंगों के प्रसारण की दूसरी विधि भी हालांकि काफी पुरानी है परन्तु पिछले कुछ वर्षों से इसका अधिक प्रयोग किया जा रहा है, इसे एफ.एम. या फ्रिक्वेन्सी मॉडयूलेशन कहते हैं, इसमें तरंगों की आवृत्ति का माडयूलेशन किया जाता है और फिर इसे सम्प्रेषित करते हैं इस प्रक्रिया में नॉइज और सिग्नल्स फ्लक्चुएशन्स नहीं होते और मॉडयूलेशन के वक्त की गुणवत्ता रिसीवर को डिमॉडयूलेशन के बाद यथावत प्राप्त होती है । और रिसीवर सेट पर न तो शोरगुल आता है न सिग्नल्स फ्लक्चुएशन्स । इसका उपयोग वर्तमान में टी.वी. प्रसारण, एफ.एम.रेडियो, वायरलेस सेटों आदि में किया जाता है । इस विधि के सम्प्रेषण में कमी यह है कि इसे अधिक दूर तक सम्प्रेषित नहीं किया जा सकता अत: इसमें जगह जगह पुन:सम्प्रेषण केन्द्र यानि रिले सेण्टर्स या डिश रिसीवर्स लगा कर पुन: सम्प्रेषण करना पड़ता है । अत: यह विधि खर्चीली और मंहगी पड़ती है । यही एफ.एम. या फ्रिक्वेन्सी मॉडयूलेशन है ।
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